Monday, December 31, 2012
Thursday, December 20, 2012
Monday, October 29, 2012
Saturday, September 15, 2012
Monday, September 3, 2012
महालक्ष्मी व्रत विधि और कथा
Thursday, August 30, 2012
जय संतोषी माता
जय संतोषी माँ |
तेरे नाम की छैया में ,मैंने पाया प्यार तुम्हारा है
संतोष सिखाती है तू ,हर काज तूने मेरा संवारा है
तेरे बिन माँ संतोषी ,मेरा इस जग में कहाँ गुजारा है
जय जय माँ संतोषी ,मेरे लब पर तेरा ही जयकारा है
जय जय माँ संतोषी ,मेरे लब पर तेरा ही जयकारा है
जय जय संतोषी माँ ,बस तर ही सहारा है जेकर है
जय जय संतोषी माँ ,सब के दुखो को हरनेवाली
जी जय संतोषी माँ ,बस अब तेरा ही सहारा है
संकट दूर करो माँ अम्बे
अपने वचन निभाओ माँ अम्बे
आज झोली खली ले कर आई हूँ
बार दे झोली ,खली झोली न जाने देना
एक तेरा सहारा है तू ही पार लगाना माता
======जय संतोषी माता======
Saturday, August 25, 2012
Thursday, August 23, 2012
Monday, August 20, 2012
Sunday, August 19, 2012
Saturday, August 18, 2012
जय देव
जय माँ शेरावाली
Sunday, August 12, 2012
ओम् ....
Thursday, August 9, 2012
Wednesday, August 8, 2012
जन्माष्टमी
कृष्णा |
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ....
स्मार्त मत : ९ अगस्त गुरूवार, सप्तमी योगे अर्धरात्रि को अष्टमी व्याप्त होगी..
वैष्णव मत : १० अगस्त, शुक्रवार, अष्टमी उदय व्यापिनी दोपहर १:४२ तक होगी...
कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। साधारणतया इस व्रत के विषय में दो मत हैं ।
स्मार्त लोग अर्धरात्रि स्पर्श होने पर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं..
. और वैष्णव लोग सप्तमी का किन्चिन मात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस है
ी उपवास करते हैं | वैष्णवों में उदयाव्यपिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं |
जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि के अभिजित मुहूर्त में अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियो के, घट घट के संताप, दुःख, पाप मिट जाते है | जिन्होंने इस श्रृष्टि को गीता का उपदेश दे कर उसका कल्याण किया, जिसने अर्जुन को कर्म का सिद्धांत पढाया, यह उनका जन्मोत्सव है |
हमारे वेदों में चार रात्रियों का विशेष महातम्य बताया गया है...
1) दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है...
2) शिवरात्रि महारात्रि है...
3) श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और
4) होली अहोरात्रि है...
जिनके जन्म के सैंयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है | इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। | इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है।
*** अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती... इसमें केवल पहली अष्टमी है... यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो 'जयंती' नाम से संबोधित की जाएगी...
*** "वह्निपुराण" का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको "जयंती" नाम से ही संबोधित किया जाएगा | अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए...
*** "विष्णुरहस्यादि" वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नाम वाली ही कही जाएगी...
*** "वसिष्ठ संहिता" का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए...
*** "स्कन्द पुराण" का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं... उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है... इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं...
योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। ब्रजमंडल में श्री कृष्णाष्टमी "नंद-महोत्सव" अर्थात् "दधिकांदौ श्रीकृष्ण" के जन्म उत्सव का दृश्य बड़ा ही दुर्लभ होता है | भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढा ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं तथा छप्पन भोग का महाभोग लगते है। वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। सम्पूर्ण ब्रजमंडल "नन्द के आनंद भयो... जय कन्हैय्या लाल की"... जैसे जयघोषो व बधाइयो से गुंजायमान होता है...
व्रत महात्यम:-
जन्माष्टमी का व्रत "व्रतराज" कहा गया है... इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते है...
"भविष्य पुराण" के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है।
कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली में कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाते है और उनके पितरो को नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है |
"स्कन्द पुराण" के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है।
"ब्रह्मपुराण" का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें।
केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करें-
"ॐ नमो नारायनाय "
आथवा
" सिद्धार्थ: सिद्ध संकल्प: सिद्धिद सिद्धि: साधन:"
आथवा
"ॐ नमों भगवते वासुदेवाय"
या
"श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:"॥
आथवा
"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय" ||
उसके पश्चात सभी परिजनों में प्रसाद वितरण कर सपरिवार अन्न भोजन ग्रहण करे और यदि संभव हो तो रात्रि जागरण करना विशेष लाभ प्रद सिद्ध होता है जो किसी भी जीव की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ति करता है...
इसके आलावा कृष्ण जन्म के समय "राम चरित मानस" के"बालकांड" में "रामजन्म प्रसंग" का पाठ आथवा "विष्णु सहस्त्रनाम" , "पुरुष सूक्त" का पाठ भी सर्वस्य सिद्दी व सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला है...
इस "संतान गोपाल मंत्र", के जाप व "हरिवंश पुराण", "गीता" के पाठ का भी बड़ा ही महत्व्य है |यह तिथि तंत्र साधको के लिए भी बहु प्रतीक्षित होती है, इस तिथि में "सम्मोहन" के प्रयोग सबसे ज्यादा सिद्ध किये जाते है | यदि कोई सगा सम्बन्धी रूठ जाये, नाराज़ हो जाये, सम्बन्ध विच्छेद हो जाये,घर से भाग जाये, खो जाये तो इस दिन उन्हें वापिस बुलाने का प्रयोग अथवा बिगड़े संबंधो को मधुर करने का प्रयोग भी खूब किया जाता है |
जय श्री कृष्ण.
Monday, August 6, 2012
Friday, August 3, 2012
Thursday, August 2, 2012
Monday, July 30, 2012
Sunday, July 29, 2012
भोलेनाथ
Saturday, July 28, 2012
कृष्णा
Friday, July 27, 2012
शिव
जय अम्बे
जय गणेश
जय शिव
Thursday, July 26, 2012
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