Monday, July 30, 2012

जय हनुमान

जय हनुमान

श्री गुरु चरण सरोज रज ,निज मन मुकुर सुधारि
बरनऊ रघुवर विमल जसु,जो दायक फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानि के ,सुमिरो पवन कुमार
बल बुधि विद्या देऊ  मोहि ,हरहु क्लेश विकार 

शिवाये नम'

शिव

ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम |


उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्युर्मुक्षियाय मामृतात ||


ॐ नमः शिवाय शिवायै नमः ॐ !!!

Sunday, July 29, 2012

भोलेनाथ

शिव

| छोड़े आज चरण भोले के , तो कभी पकड़ न पाओगे ||

छोड़े आज चरण भोले के , तो कभी पकड़ न पाओगे |
ऐसी वैसी भूल नहीं ये , तुम जीवन भर पछताओगे ||

इस जीवन में ऐसे मौके , भक्तो बार-बार नहीं आते है |
समय को जो पहचान न पाए , वो ही कष्ट उठाते है ||
सीधा रास्ता छोड़ दिया तो , तुम दर पे कैसे आओगे |
छोड़े आज चरण भोले के , तो कभी पकड़ न पाओगे ||

जहाँ सब का मान बराबर हो , ऐसा स्थान कहाँ होगा |
भोलेबाबा से बढ़ कर भक्तो , दूजा भगवान कहाँ होगा ||
हाथ से मौका गंवा दिया तो , तुम सुकूँ कैसे पाओगे |
छोड़े आज चरण भोले के , तो कभी पकड़ न पाओगे ||

‘श्याम’ बड़ा अच्छा मौका है , तु जाकर इसे अजमाले |
मन को बड़ा सुकूँ मिलेगा , गर दर पे हाजिरी लगवाले ||
आज कसाला कर लोगे तो , जन्म-जन्म सुख पाओगे |
छोड़े आज चरण भोले के , तो कभी पकड़ न पाओगे ||

जय शिव भोलेनाथ 

Saturday, July 28, 2012

जय दुर्गे

जय माता की

जय माँ जय जय माँ
..
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते ॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।

सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोsस्तु ते ॥

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमोsस्तु ते ||

ॐ श्री दुर्गाय नमः


जय श्री कृष्ण

जय श्री कृष्ण

जय श्री कृष्ण -जय श्री कृष्ण -

जय श्री कृष्ण

-जय श्री कृष्ण
-
जय श्री कृष्ण

-जय श्री कृष्ण
 -
जय श्री कृष्ण

 -राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे

जय श्री कृष्ण

जय श्री कृष्ण


-जय श्री कृष्ण

-जय श्री कृष्ण

शिव शिव

शिव

जिस प्रकार एक ही सूर्य सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है । यह शरीर ही क्षेत्र है और इसको जो भली प्रकार जानता है, वह क्षेत्रज्ञ है । वह उसमेँ फँसा नहीँ है बल्कि उसका संचालक है ।
जय भोलेनाथ सदाशिव शंकर
शिव ! शिव !!

कृष्णा

कृष्णा

|| जानना चाहो गर ‘कृष्णा ’ के प्यार को ||

जानना चाहो गर ‘कृष्णा ’ के प्यार को |
मन से झांक लो तुम राधा के हार को ||

बिन कसाले के हर राज़ ही खुल जाएगा |
तुम्हे तब आशीष दोनों का मिल जाएगा ||
रखना आँखे खुली तब दोनों के दीदार को |
जानना चाहो गर ‘कृष्णा ’ के प्यार को ||

कमी कोई भी तुमको नही होगी कभी |
जो भी मांगोगे मिल जाएगा वो तभी ||
जोड़े रखना सभी को होगा उनसे तार को |
जानना चाहो गर ‘कृष्णा ’ के प्यार को ||

मन है उनका दिया तन उन्ही का दिया |
जो भी पास तेरे सब है उन्ही का दिया ||
रखना सुरक्षित उनके सभी उपहार को |
जानना चाहो गर ‘कृष्णा  ’ के प्यार को ||

जय श्री कृष्णा

Friday, July 27, 2012

शिव

शिव

शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं।

शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"।

नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कार
पाँच अक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" ।
प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं।
अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है।
एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है|

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

!!!۞!!! ॐ नम: शिवाय !!!۞!!

जय अम्बे

अम्बे माँ

जय माँ अम्बे जय जय माँ अम्बे
..
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते ॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।

सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोsस्तु ते ॥

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते

भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमोsस्तु ते ||

जय माँ अम्बे

जय माँ अम्बे





जय गणेश

गणपति
हे गणेश देव !
खिलते हुए जपा पुष्प, रत्न, पुष्प मूँगा और प्रभात की लालिमा, इन सबोँ की ज्योति के समुच्चयवाले, लम्बोदर, वक्रतुण्ड, एकदन्त, गणोँ के स्वामी, शिवसुत श्रीगणेश जी की स्तुति करता हूँ ।
वक्रतुण्ड वाली महा काया को धारण करने वाले, करोड़ोँ सूर्यो के समान कान्ति वाले, हे गणेश देव ! मेरे सारे कार्योँ के विघ्नोँ को सदा के लिये दूर करो ।
जय गणेश देवा
जय गणेश देवा

गणपति बाप्पा मोरया

जय शिव

ओम्

सावन के महीने में भगवान शिव धरती पर भ्रमण पर आते हैं
कहते हैं सावन के महीने में स्वयं भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं। इसलिए इस विशेष महीने में भक्तगण शिव की पूजा-अर्चना में रम जाते हैं। आइए, हम उनके विभिन्न नामों को जानकर उन्हें नमन करें। शिव महाकाल हैं। औघड दानी हैं। भोले शंकर हैं। महामृत्युंञ्जयहैं। सर्वशक्तिमान हैं। वे देव हैं, देवाधिपतिहैं, हर हर महादेव हैं। महायोगीहैं। नटराज हैं। तीन आंख वाले हैं, क्रोधी हैं, तो अतिशीघ्र प्रसन्न भी होते हैं, अजन्मा हैं, सदा से हैं। मनुष्य रूप हैं, अरूप भी हैं। गंगा उनकी जटाओं से निकली हैं, सांप उनके गले में है, जो योग का कमाल है।
यहां गले में सांप के साथ विष भी है। देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन से निकला विष उन्होंने ही पी लिया। वे विषपायीभी हैं। वे संहारक त्रिशूल रखते हैं, लेकिन गायन वादन के लिए डमरू भी है। वे परम ज्ञानी हैं। वे महा-नर्तक भी हैं। वे निराले देव हैं। वे भारत के महादेव, देवाधिपति शिवशंकर हैं। वे भारत की देवत्रयी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से एक अतिमहत्वपूर्ण विराट दिव्य ऊर्जा हैं। शिव विश्व आस्था हैं।
भारत, मिस्र,यूनान, इटली, फ्रांस, अमेरिका आदि अनेक देशों में शिव की उपासना की जाती है। इस्लाम आने के पूर्व काबा क्षेत्र में शिव की 360 मूर्तियां थीं। इनमें शिव लिंग भी था। शिव समूचे भारत में मूर्ति के रूप में पूजे जाते हैं। भौतिक जगत की प्रत्येक वस्तु क्षरणशील है - क्षर है। यह इंद्रिय गोचर रूप-आकार है। उसमें विद्यमान अक्षर आत्मानुभूति का विषय है।
भारत में प्रत्येक व्यक्ति, कीट पतंगे, वनस्पति और अणु-परमाणु में भी परम ऊर्जा के तत्व देखे जाते हैं। जहां-जहां दिव्यता वहां-वहां देवता-यही भारतीय संस्कृति की अनुभूति है। ऋग्वेद में एक दिलचस्प देवता हैं रुद्र। वे तीन मुंह वाले हैं। वे साधकों का पोषण करते हैं तथा उन्हें मोक्ष भी दिलाते हैं। यही रुद्र भारत में लोकप्रिय महादेव हैं। रुद्र ऋग्वेद में ही शिव भी हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त 114 में 11मंत्र हैं। सभी मंत्र रुद्र देव को अर्पित हैं। रुद्र यहां जटाधारी हैं। वे अपने हाथ में दिव्य आरोग्यदायी औषधियां रखते हैं। स्तुतिकत्र्ताओंको मानसिक शांति देते हैं। मनुष्य शरीर में मौजूद विष दूर करते हैं। मंत्र [1-6] में प्रार्थना है कि वृद्धों को न सताएं, बच्चों को हिंसा में न लगाएं। माता-पिता की हिंसा न करें। गौओंको आघात न पहुंचाएं। मंत्र [7-8] में वे मरुद्गणोंके पिता कहे गए हैं। सुरक्षा के लिए उनकी स्तुतियां की जाती हैं। मंत्र [9-11] ऋषिगण रुद्र का निवास पर्वत की गुहा में बताते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं।
चौथे मंत्र में वे रुद्र को शिवेन वचसा कहते हैं, अर्थात शिव हैं। पांचवें में वे प्रमुख प्रवक्ता, प्रथम पूज्य हैं। वे नीलकंठ हैं। [मंत्र 8]फिर वे सभा रूप हैं, सभापति भी हैं। [मंत्र 24]सेना और सेनापति भी हैं। [मंत्र 25]वे सृष्टि रचना के आदि में प्रथम पूर्वज हैं और वर्तमान में भी विद्यमान हैं। वे ग्राम गली में विद्यमान हैं, राजमार्ग में भी। वायु प्रवाह, प्रलय वास्तु सूर्य चंद्र में भी वे उपस्थित हैं [मंत्र 37-39]।मंत्र 64,65 व 66 में अंतरिक्ष व पृथ्वी में स्थित रुद्र को नमस्कार किया गया है। रुद्र और शिव एक हैं। उनकी हजार आंखें और भुजाएं हैं। वे योगी हैं। अथर्ववेद के 11वें अध्याय का दूसरा सूक्त रुद्र सूक्त कहा जाता है। रुद्र यहां भव [उत्पत्ति] हैं। [मंत्र 3]के अनुसार, वे अंतरिक्षमंडल के नियन्ता हैं, इसलिए उनको नमस्कार है। [मंत्र 4 मंत्र 5]में वे समदर्शी अर्थात सभी को एकसमान रूप में देखते हैं।
 — 

बाल गोपाल

गोपाल

आँखों में गोपाल

दिल में नंदलाल

किधर देखू प्रभु

जहाँ भी देखूं

बस मेरे बाल गोपाल 

Thursday, July 26, 2012

अम्बे

माँ

भगवती भक्ति करो परवान तुम
अम्बे कर दो अमर जिस पर हो जाओ
मेहरबान तुम
दया दृष्टि बनाये  रखना
दुष्टों से बचाए रखना 

ननद किशोर

गोपाल

माखन चोर
नन्द किशोर
मनमोहन
घनश्याम रे
कितने तेरे रूप रे
कितने तेरे नाम रे 

भोले हैं

शिव

कर ले शिव की पूजा

पल मिलेगा न दूजा

भोले हैं शिव बड़े

नादानी से नाम

चले आयेंगे दौड़े 

विघ्न हरता

गणपति

विघ्न हरता
मंगल करता
गणपति बाप्पा
कृपा करता