Saturday, June 26, 2021

शिव आरती विश्लेषण

यह केवल शिवजी की आरती नहीं है बल्कि ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों की आरती है "ॐ जय शिव ओंकारा" यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं.. लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि... इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है.. *एकानन* (एकमुखी, विष्णु), *चतुरानन* (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) और *पंचानन* (पंचमुखी, शिव) *राजे..* *हंसासन* (ब्रम्हा) *गरुड़ासन* (विष्णु ) *वृषवाहन* (शिव) *साजे..* *दो भुज* (विष्णु), *चार चतुर्भुज* (ब्रम्हा), *दसभुज* (शिव) अति सोहे.. *अक्षमाला* (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ), *वनमाला* (विष्णु ) *रुण्डमाला* (शिव) धारी.. *चंदन* (ब्रम्हा ), *मृगमद* (कस्तूरी विष्णु ), *चंदा* (शिव) *भाले शुभकारी* (मस्तक पर शोभा पाते हैं).. *श्वेताम्बर* (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) *पीताम्बर* (पीले वस्त्र, विष्णु) *बाघाम्बर* (बाघ चर्म ,शिव) अंगे.. *ब्रम्हादिक* (ब्राह्मण, ब्रह्मा) *सनकादिक* (सनक आदि, विष्णु ) *प्रेतादिक* (शिव ) *संगे* (साथ रहते हैं).. *कर के मध्य कमंडल* (ब्रम्हा), *चक्र* (विष्णु), *त्रिशूल* (शिव) धर्ता.. *जगकर्ता* (ब्रम्हा) *जगहर्ता* (शिव ) *जग पालनकर्ता* (विष्णु).. *ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका* (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।) *प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका* (सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है... आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं. संभवतः इसी *त्रि-देव रुप के लिए वेदों में ओंकार नाद को ओ३म्* के रुप में प्रकट किया गया है ।

Thursday, June 24, 2021

गुप्त नवरात्रे

कथा- गुप्त नवरात्रि से जुड़ी प्रामाणिक एवं प्राचीन कथा यह है। इस कथा के अनुसार एक समय ऋषि श्रृंगी भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे। अचानक भीड़ से एक स्त्री निकलकर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती। धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती। मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं, उनकी भक्ति-साधना से अपने और परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है, लेकिन इसके अतिरिक्त 2 नवरात्रि और भी होते हैं जिन्हें 'गुप्त नवरात्रि' कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रों में 9 देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्रों में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है। यदि इन गुप्त नवरात्रि में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा-साधना करता है, तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं। ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है, तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्रि की पूजा की। मां उस पर प्रसन्न हुईं और उस स्त्री के जीवन में परिवर्तन आने लगा। उसके घर में सुख-शांति आ गई। पति, जो गलत रास्ते पर था, सही मार्ग पर आ गया। गुप्त नवरात्रि की माता की आराधना करने से उनका जीवन पुन: खिल उठा।

Saturday, May 9, 2020

संतोषी माता मंदिर, जोधपुर

जय संतोषी माता 


                                                                    जय माता दी

संतोषी माता मंदिर, लाल सागर में, जोधपुर शहर से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दू देवी संतोषी माता को समर्पित है, जिन्हें भारत में विशेष रूप से महिलाओं द्वारा पूजा जाता है। इस मंदिर को भारत के सभी संतोषी माता मंदिरों के बीच वास्तविक माना जाता है। शुक्रवार का दिन इस देवी की पूजा के लिये भाग्यशाली माना जाता है।




Monday, April 20, 2020

करनी माता


करनी माता मंदिर के अंदर चूहों के लिये प्रशाद 


मंदिर के अंदर का भव्य थाल चूहों के प्रशाद के लिये


जय करनी माता 


संगमरमर से बने करनी माता मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचते ही चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह जाता है। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।

चित्र गूगल की सहायता से

Thursday, November 8, 2018

गोवर्धन कथा



प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन ब्रजमण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी।भगवान श्रीकृष्ण ने कहा -'कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं, इसलिए हमें गो-वंश की उन्नति के लिए पर्वत व वृक्षों की पूजा कर उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर वन महोत्सव भी मनाना चाहिए। गोबर की ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे जलाना नहीं चाहिए, बल्कि खेतों में डालकर उस पर हुल चलाते हुए अन्नोषधि उत्पन्न करनी चाहिए जिससे हमारे देश की उन्नति हो।'

भगवान श्रीकृष्ण का यह उपदेश सुन ब्रजवासियों ने ज्यों ही पर्वत, वन और गोबर की पूजा आरम्भ की, इन्द्र ने कुपित होकर सात दिन तक घनघोर वर्षा शुरू कर दी। परन्तु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर ब्रज को बचा लिया। फलतः इन्द्र को लज्जित होकर सातवें दिन क्षमा याचना करनी पड़ी। तभी से समस्त उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा प्रचलित हुई। गोवर्धन पूजा करने से खेतों में अधिक अन्न उपजता है, रोग दूर होते हैं और घर में सुख-शान्ति रहती है।

🙏🏻जय श्री कृष्ण 🙏🏻

Saturday, October 20, 2018

महिषासुर वध



जय माता की 


पुराणिक कथाओ के अनुसार महिषासुर एक असुर था। महिषासुर के पिता रंभ,असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से महिषासुर का आगमन हुआ। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है। 

महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। 

महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर तिर्मूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। सारे देवताओं ने फिर से मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गये।

कोई उपाय न पाक देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का सृजन किया जिसे शक्ति और पार्वति के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्योहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयदश्मी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।


Monday, January 8, 2018

शिव परिवार

शिव के अनगिनत नाम 
महादेव को देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से जाना जाता है। शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वेदों में शिव को रुद्र कहते हैं। शिव व्यक्ति की चेतना के सूत्रधार कहे जाते हैं। शिव की पत्‍नी पार्वती हैं जो शक्ति का रूप कही जाती हैं। कार्तिकेय और गणेश शिव के दो पुत्र हैं, और अशोक सुंदरी इनकी बेटी हैं। शिव को ज्‍यादातर योगी के रूप में दिखाया जाता है। हालाकि उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश उनका निवास स्‍थान है। शैव मत के आधार पर शिव के साथ शक्ति सर्व पूजित हैं