प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन ब्रजमण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी।भगवान श्रीकृष्ण ने कहा -'कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं, इसलिए हमें गो-वंश की उन्नति के लिए पर्वत व वृक्षों की पूजा कर उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर वन महोत्सव भी मनाना चाहिए। गोबर की ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे जलाना नहीं चाहिए, बल्कि खेतों में डालकर उस पर हुल चलाते हुए अन्नोषधि उत्पन्न करनी चाहिए जिससे हमारे देश की उन्नति हो।'
भगवान श्रीकृष्ण का यह उपदेश सुन ब्रजवासियों ने ज्यों ही पर्वत, वन और गोबर की पूजा आरम्भ की, इन्द्र ने कुपित होकर सात दिन तक घनघोर वर्षा शुरू कर दी। परन्तु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर ब्रज को बचा लिया। फलतः इन्द्र को लज्जित होकर सातवें दिन क्षमा याचना करनी पड़ी। तभी से समस्त उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा प्रचलित हुई। गोवर्धन पूजा करने से खेतों में अधिक अन्न उपजता है, रोग दूर होते हैं और घर में सुख-शान्ति रहती है।
🙏🏻जय श्री कृष्ण 🙏🏻
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