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सावन के महीने में भगवान शिव धरती पर भ्रमण पर आते हैं कहते हैं सावन के महीने में स्वयं भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं। इसलिए इस विशेष महीने में भक्तगण शिव की पूजा-अर्चना में रम जाते हैं। आइए, हम उनके विभिन्न नामों को जानकर उन्हें नमन करें। शिव महाकाल हैं। औघड दानी हैं। भोले शंकर हैं। महामृत्युंञ्जयहैं। सर्वशक्तिमान हैं। वे देव हैं, देवाधिपतिहैं, हर हर महादेव हैं। महायोगीहैं। नटराज हैं। तीन आंख वाले हैं, क्रोधी हैं, तो अतिशीघ्र प्रसन्न भी होते हैं, अजन्मा हैं, सदा से हैं। मनुष्य रूप हैं, अरूप भी हैं। गंगा उनकी जटाओं से निकली हैं, सांप उनके गले में है, जो योग का कमाल है। यहां गले में सांप के साथ विष भी है। देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन से निकला विष उन्होंने ही पी लिया। वे विषपायीभी हैं। वे संहारक त्रिशूल रखते हैं, लेकिन गायन वादन के लिए डमरू भी है। वे परम ज्ञानी हैं। वे महा-नर्तक भी हैं। वे निराले देव हैं। वे भारत के महादेव, देवाधिपति शिवशंकर हैं। वे भारत की देवत्रयी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से एक अतिमहत्वपूर्ण विराट दिव्य ऊर्जा हैं। शिव विश्व आस्था हैं। भारत, मिस्र,यूनान, इटली, फ्रांस, अमेरिका आदि अनेक देशों में शिव की उपासना की जाती है। इस्लाम आने के पूर्व काबा क्षेत्र में शिव की 360 मूर्तियां थीं। इनमें शिव लिंग भी था। शिव समूचे भारत में मूर्ति के रूप में पूजे जाते हैं। भौतिक जगत की प्रत्येक वस्तु क्षरणशील है - क्षर है। यह इंद्रिय गोचर रूप-आकार है। उसमें विद्यमान अक्षर आत्मानुभूति का विषय है। भारत में प्रत्येक व्यक्ति, कीट पतंगे, वनस्पति और अणु-परमाणु में भी परम ऊर्जा के तत्व देखे जाते हैं। जहां-जहां दिव्यता वहां-वहां देवता-यही भारतीय संस्कृति की अनुभूति है। ऋग्वेद में एक दिलचस्प देवता हैं रुद्र। वे तीन मुंह वाले हैं। वे साधकों का पोषण करते हैं तथा उन्हें मोक्ष भी दिलाते हैं। यही रुद्र भारत में लोकप्रिय महादेव हैं। रुद्र ऋग्वेद में ही शिव भी हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त 114 में 11मंत्र हैं। सभी मंत्र रुद्र देव को अर्पित हैं। रुद्र यहां जटाधारी हैं। वे अपने हाथ में दिव्य आरोग्यदायी औषधियां रखते हैं। स्तुतिकत्र्ताओंको मानसिक शांति देते हैं। मनुष्य शरीर में मौजूद विष दूर करते हैं। मंत्र [1-6] में प्रार्थना है कि वृद्धों को न सताएं, बच्चों को हिंसा में न लगाएं। माता-पिता की हिंसा न करें। गौओंको आघात न पहुंचाएं। मंत्र [7-8] में वे मरुद्गणोंके पिता कहे गए हैं। सुरक्षा के लिए उनकी स्तुतियां की जाती हैं। मंत्र [9-11] ऋषिगण रुद्र का निवास पर्वत की गुहा में बताते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं। चौथे मंत्र में वे रुद्र को शिवेन वचसा कहते हैं, अर्थात शिव हैं। पांचवें में वे प्रमुख प्रवक्ता, प्रथम पूज्य हैं। वे नीलकंठ हैं। [मंत्र 8]फिर वे सभा रूप हैं, सभापति भी हैं। [मंत्र 24]सेना और सेनापति भी हैं। [मंत्र 25]वे सृष्टि रचना के आदि में प्रथम पूर्वज हैं और वर्तमान में भी विद्यमान हैं। वे ग्राम गली में विद्यमान हैं, राजमार्ग में भी। वायु प्रवाह, प्रलय वास्तु सूर्य चंद्र में भी वे उपस्थित हैं [मंत्र 37-39]।मंत्र 64,65 व 66 में अंतरिक्ष व पृथ्वी में स्थित रुद्र को नमस्कार किया गया है। रुद्र और शिव एक हैं। उनकी हजार आंखें और भुजाएं हैं। वे योगी हैं। अथर्ववेद के 11वें अध्याय का दूसरा सूक्त रुद्र सूक्त कहा जाता है। रुद्र यहां भव [उत्पत्ति] हैं। [मंत्र 3]के अनुसार, वे अंतरिक्षमंडल के नियन्ता हैं, इसलिए उनको नमस्कार है। [मंत्र 4 मंत्र 5]में वे समदर्शी अर्थात सभी को एकसमान रूप में देखते हैं।
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