Thursday, October 31, 2013

धनतेरस

धनतेरस

प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि के दिन धन तेरस का त्योहार मनाया जाता है।

 इस दिन से ही पंच दिवसीय त्योहार शुरू होता है जो भाई दूज के साथ समाप्त होता है।


  धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी हाथों में स्वर्ण कलश लेकर सागर मंथन से उत्पन्न हुए।

 धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया।

 धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई।

इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

इस दिन सोना ,चांदी या बर्तन खरीदने शुभ माना  जाता  है


 

Sunday, October 27, 2013

ॐ श्री हरि: करवाचौथ की कथा... विधि अनुसार

ॐ श्री हरि: करवाचौथ की कथा... विधि अनुसार:                करवाचौथ पूजन मों  10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें पूजन विधि बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी का...

करवाचौथ की कथा... विधि अनुसार


               करवाचौथ
पूजन मों 10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें

पूजन विधि
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।

पूजन हेतु निम्न मंत्र बोलें 
-
'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।

करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।

सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएँ। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें।

पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी) को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।

प्रथम कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।

 इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

द्वितीय कथा
इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। 

नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। 
उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।

परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।   
 
 करवा माँ से चिर सुहागन होने का आशीरवाद लें.. श्रद्धा पूर्वक वर्त को सम्पन्न करे

  जै करवा माँ

Saturday, October 26, 2013

ॐ श्री हरि: कार्तिक मास में दीपदान का महत्व.... रमा

ॐ श्री हरि: कार्तिक मास में दीपदान का महत्व.... रमा: दीपदान के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है.  शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं. विष्णु जी को न...

कार्तिक मास में दीपदान का महत्व.... रमा

दीपदान के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है. 

शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं. विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं. 

इस प्रकार देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं. इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है.

पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए. 

इस माह में जो व्यक्ति घी या तेल का दीया जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है. मंदिरों में और नदी दीपदान के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है. शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं.

 विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं. इस प्रकार देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं. इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है.

पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए

इस माह में जो व्यक्ति घी या तेल का दीया जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है. मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. पदमपुराण में यह भी लिखा है कि दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है.

 इसी माह में हरिबोधिनी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु के समक्ष कपूर का दीपक जलाने से श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक दीपदान का विशिष्ट महत्व है. ऎसा माना जाता है कि त्रयोदशी के दीपदान से भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं. व्यक्ति के घर में सुख तथा समृद्धि बढ़ती है.

दीपदान की यह परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो आज तक जारी है. 

प्राचीन समय से ही दीपदान की यह परंपरा मंगलकारी मानी गई है. इसलिए आधुनिक समय में आज भी दीपदान किया जाता है. 

कार्तिक के इस माह में महिलाएं प्रतिदिन आटे से बने दीपक को जलाकर दीपदान करती है. 

दीपदान करने के लिए कई अवसर आते हैं तथा कई पवित्र स्थानों पर यह दान किया जाता है. 

दीपदान करने का अर्थ केवल सौभाग्य में वृद्धि करना है. कई रुपों में जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. नए प्रकाश में श्रद्धालु नई राह को तलाशते हैं. दीपदान करने से अपना सुख तथा समृद्धि तो बढ़ती ही है, साथ में जुडे़ लोगों के सौभाग्य में भी वृद्धि होती है.के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. 

पदमपुराण में यह भी लिखा है कि दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है. 

इसी माह में हरिबोधिनी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु के समक्ष कपूर का दीपक जलाने से श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है. 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक दीपदान का विशिष्ट महत्व है. ऎसा माना जाता है कि त्रयोदशी के दीपदान से भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं. व्यक्ति के घर में सुख तथा समृद्धि बढ़ती है.

दीपदान की यह परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो आज तक जारी है.

 प्राचीन समय से ही दीपदान की यह परंपरा मंगलकारी मानी गई है. इसलिए आधुनिक समय में आज भी दीपदान किया जाता है.

 कार्तिक के इस माह में महिलाएं प्रतिदिन आटे से बने दीपक को जलाकर दीपदान करती है. दीपदान करने के लिए कई अवसर आते हैं तथा कई पवित्र स्थानों पर यह दान किया जाता है. दीपदान करने का अर्थ केवल सौभाग्य में वृद्धि करना है.

 कई रुपों में जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. नए प्रकाश में श्रद्धालु नई राह को तलाशते हैं. दीपदान करने से अपना सुख तथा समृद्धि तो बढ़ती ही है, साथ में जुडे़ लोगों के सौभाग्य में भी वृद्धि होती है.


Monday, October 7, 2013

शुभ नवरात्री ..माँ चंद्रघंटा

जय माता की


ॐ श्री माता चंद्रघंटा नमः ॐ । शुभ नवरात्रि

1- पिण्डज प्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घंष्टेति विश्रुता ||
2- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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3- ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी , दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाह: स्वधा नमोस्तुते |

अर्थात - जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! आपको मेरा नमस्कार है।
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माँ चंद्रघंटा के माथे पर घंटे आकार का अर्धचन्द्र है, जिस कारण इन्हें चन्द्रघंटा कहा जाता है. माता का शरीर स्वर्ण के समान उज्जवल है. इनका वाहन सिंह है और इनके दस हाथ हैं जो की विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित रहते हैं. सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा का रूप युद्ध के लिए उद्धत दिखता है और उनके घंटे की प्रचंड ध्वनि से असुर और राक्षस भयभीत करते हैं. भगवती चंद्रघंटा की उपासना करने से उपासक आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त करता है और जो श्रद्धालु इस दिन श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक दुर्गा सप्तसती का पाठ करता है, वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान को प्राप्त करता है. माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना भक्तो को सभी जन्मों के कष्टों और पापों से मुक्त कर इसलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है और भगवती अपने दोनों हाथो से साधकों को चिरायु, सुख सम्पदा और रोगों से मुक्त होने का वरदान देती हैं.

आप सभी को सपरिवार जगतजननी, जगत-स्वरूपा, जगत-कल्याणी , जगत-स्वामिनी, माता आदिशक्ति नव-दुर्गा की परम कृपा प्राप्त हो ॥

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ - शुभ नवरात्रि - ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Monday, September 30, 2013

केवल स्वच्छ मन





    न मीरा का मोह रोक पाया

   न राधा का प्रेम ही

   सुदामा की दोस्ती पर

   न्यौछावर अपनी हर चीज़ की

  भक्ति में शक्ति है कितनी

  ये बताया सब को

 कृष्ण और सुदामा के प्रेम ने

  न धन चाहिये 

न रत्न चाहिये

कृष्ण को पाना है तो

 केवल स्वच्छ मन चाहिये

जै श्री कृष्णा

Friday, September 27, 2013

दुर्गा चालीसा




  नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥..
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥
सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥
करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

जय माता की
सब को नवरात्रे की शुभ कामनायें

 

Sunday, September 8, 2013

गणेश चतुर्थी का महात्म


ganesh chaturthi katha hindi,
FILE

माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन तिल चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदा दूर होती है, कई दिनों से रुके मांगलिक कार्य संपन्न होते है तथा भगवान श्रीगणेश असीम सुखों की प्राप्ति कराते हैं। इस दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढ़ने का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढ़नी चाहिये


पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। 


देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।

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भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हे एक उपाय सूझा

गणेश जी अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

तब गणेश जी ने कहा - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' 

यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। 

इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी।

गणपति बप्पा मोर्या मंगल मूर्ति मोर्या

 

Saturday, September 7, 2013

तीज की शुभ कामनायें


   सभी सुहागनो को तीज की शुभ कामनायें


    भगवान सब की मनोकामना पूरी करे

    
   

Wednesday, August 28, 2013

कृष्ण की यादो का झूला




इस बार झूला नही झुलाया तुझे

पर मन के हाथों में तेरे पालने की रस्सी है

मन झुला रहा है झुला तुझे लगातार

आंखों में तेरी ही छवी बसी है......रमा.... कृष्ण जन्म की हार्दिक शुभ कामनायें

Friday, August 9, 2013

जय शनि शनैश्वर




     जय हो शनि देव की

    आप की जाते हुये 

   देखूं मैं सवारी

   लक्ष्मी जी का आगमन

   देखूं मैं दिन रात

   दिन रात क्या

   हर घड़ी शुभ करना सब की

   यही मेरे दिल की बात

    जय हो

    

Sunday, July 21, 2013

गुरू पूर्णिमा


  
गुरू पूर्णिमा बहुत ही प्राचीन त्योहार है। यह पंरपरा महर्षि व्यास जी के समय से है, जब उन्होने वेदो को संगृहित किया था । महर्षि जी ने न केवल चारो वेदो को संगृहित किया ब्लकि ३६ पुराणो का भी अभिलेखन किया था । 
उनके शिष्य उनके इस अनमोल देन का रिण चुकाना चाहते थे तो महर्षि जी ने कहा कि वर्ष में एक दिन उन्हें समर्पित करे , उस दिन नियत समय पर जो भेंट या उपहार उन्हे अर्पित करेंगे वो उन तक जरूर पहुंचेगा, तो सबने मिल कर आषाढ़ की पूर्णिमा का दिन चुना, इस लिये इस दिन को हम गुरूपूर्णिमा के रूप में जानते और मनाते हैं

Sunday, May 19, 2013

फिर से आओ कान्हा




    जय श्री कृष्णा
आज फिर समय की पुकार है

बांसुरी छोड़ो चक्र पकड़ो

दुनिया विनाश की ओर बढ़ रही है

एक बार फिर से आओ कान्हा

भटके हुओ को राह दिखलाओ

जय श्री कृष्णा

Friday, April 19, 2013

मेरे गिरधर

  कान्हा



हे वसुनंदन कुमार

देवकी नंदन प्यारे

गोकुल में नानाद्लाल

बाल लीला विस्तारे

गति दीन्ही पूत्न्ही

नाथ अब मेरी बारी

श्री राधावेर क्रिशंचंदर

मै अब शरण तिहारी

अब राखो लाज हमारी

मेरे गिरधर  मेरे मुरारी

जय हो मेरे क्रिशन मुरारी

Thursday, April 18, 2013

दुर्गा अष्टमी

जय माता की

दुर्गा अष्टमी की

सब को हार्दिक

शुभ कम्नाये

Saturday, March 9, 2013

महा शिवरात्रि

शिव


महा शिवरात्रि

इस पवित्र त्यौहार को पद्मराजराथ्री के नाम से भी जाना जाता है इस त्यौहार को हर साल माघ या फाल्गुन मास की त्रयोदशी या चतुर्दशी को मनाया जाता है शिव पूजा को करने का उचित समय निशिता कला बताया गया है इस दिन सभी शिव मंदिरों में लिंगोदभाव की पूजा की जाती है शिव लिंग को जल, दूध और शहद से स्नान करवा कर लकड़ी, सेब और बेल पत्र से पूजा की जाती है साथ ही भक्त जन ॐ नमह शिवाय का उच्चारण करते है

Wednesday, January 9, 2013

गणपति

गणपति

गणपति बाप्पा मोरया

विघ्न हरता

विघ्न हरो

गणपति बाप्पा मोरया

अब के बरस तू जल्दी आ