Thursday, October 31, 2013
Sunday, October 27, 2013
ॐ श्री हरि: करवाचौथ की कथा... विधि अनुसार
करवाचौथ की कथा... विधि अनुसार
Saturday, October 26, 2013
ॐ श्री हरि: कार्तिक मास में दीपदान का महत्व.... रमा
कार्तिक मास में दीपदान का महत्व.... रमा
दीपदान के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है.
शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं. विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं.
इस प्रकार देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं. इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है.
पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए.
इस माह में जो व्यक्ति घी या तेल का दीया जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है. मंदिरों में और नदी दीपदान के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है. शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं.
विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं. इस प्रकार देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं. इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है.
पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए
इस माह में जो व्यक्ति घी या तेल का दीया जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है. मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. पदमपुराण में यह भी लिखा है कि दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है.
इसी माह में हरिबोधिनी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु के समक्ष कपूर का दीपक जलाने से श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक दीपदान का विशिष्ट महत्व है. ऎसा माना जाता है कि त्रयोदशी के दीपदान से भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं. व्यक्ति के घर में सुख तथा समृद्धि बढ़ती है.
दीपदान की यह परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो आज तक जारी है.
प्राचीन समय से ही दीपदान की यह परंपरा मंगलकारी मानी गई है. इसलिए आधुनिक समय में आज भी दीपदान किया जाता है.
कार्तिक के इस माह में महिलाएं प्रतिदिन आटे से बने दीपक को जलाकर दीपदान करती है.
दीपदान करने के लिए कई अवसर आते हैं तथा कई पवित्र स्थानों पर यह दान किया जाता है.
दीपदान करने का अर्थ केवल सौभाग्य में वृद्धि करना है. कई रुपों में जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. नए प्रकाश में श्रद्धालु नई राह को तलाशते हैं. दीपदान करने से अपना सुख तथा समृद्धि तो बढ़ती ही है, साथ में जुडे़ लोगों के सौभाग्य में भी वृद्धि होती है.के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं.
पदमपुराण में यह भी लिखा है कि दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है.
इसी माह में हरिबोधिनी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु के समक्ष कपूर का दीपक जलाने से श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक दीपदान का विशिष्ट महत्व है. ऎसा माना जाता है कि त्रयोदशी के दीपदान से भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं. व्यक्ति के घर में सुख तथा समृद्धि बढ़ती है.
दीपदान की यह परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो आज तक जारी है.
प्राचीन समय से ही दीपदान की यह परंपरा मंगलकारी मानी गई है. इसलिए आधुनिक समय में आज भी दीपदान किया जाता है.
कार्तिक के इस माह में महिलाएं प्रतिदिन आटे से बने दीपक को जलाकर दीपदान करती है. दीपदान करने के लिए कई अवसर आते हैं तथा कई पवित्र स्थानों पर यह दान किया जाता है. दीपदान करने का अर्थ केवल सौभाग्य में वृद्धि करना है.
कई रुपों में जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. नए प्रकाश में श्रद्धालु नई राह को तलाशते हैं. दीपदान करने से अपना सुख तथा समृद्धि तो बढ़ती ही है, साथ में जुडे़ लोगों के सौभाग्य में भी वृद्धि होती है.
Monday, October 7, 2013
शुभ नवरात्री ..माँ चंद्रघंटा
Monday, September 30, 2013
केवल स्वच्छ मन
Friday, September 27, 2013
दुर्गा चालीसा
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥
सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥
करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥