Thursday, September 3, 2015

शीतला माँ कथा



कहते हैं कि एक बार किसी गांव में सब गांववाले शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे लेकिन गरिष्ठ भोजन मां को प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति,  मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। बस केवल एक बुढ़ी का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो उस ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने माता से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।शीतला माँ पूजन से घर में और जीवन में शांति बनी रहती है, कलह कलेश की अग्नि से सब बचे रहते हैं।

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