Monday, June 30, 2014

विनायक चतुर्थी वर्त



विनायक चतुर्थी व्रत 

सनातन धर्म में प्रथम पूज्य  देवता श्री गणेश हैं । इसीलिए हिंदू पूजा-पाठों में विनायक चतुर्थी का सबसे ज्यादा महत्व है। हिंदू धर्मशास्त्रों और ज्योतिष विज्ञान के अनुसार चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान श्री गणेश हैं।
हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।

हालाँकि विनायक चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य विनायक चतुर्थी का व्रत भाद्रपद के महीने में होता है। भाद्रपद के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

  इसलिए हिंदू पंचांग के हर माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर प्रथम पूज्य  देवता श्री गणेश की आराधना को समर्पित विनायकी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। यह चतुर्थी व्रत वरद विनायकी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत के नाम से ही इस व्रत का फल भी स्पष्ट हो जाता है। वरद का अर्थ होता है -वर देने वाला यानि मनोरथ पूरे करने वाला और विनायक भगवान श्री गणेश का ही नाम है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है विघ्न हरने वाले नायक, जो गणपति कहलाते हैं। इस प्रकार विनायकी चतुर्थी का व्रत करने से हर व्यक्ति की कामनाएं पूरी होती है और विघ्न-बाधाएं दूर होती है। व्यवहारिक रुप से देखें तो जीवन में इच्छाओं की पूर्ति और विघ्नों को दूर करने के लिए बुध्दि और विवेक की आवश्यकता होती है। भगवान श्री गणेश बुध्दि प्रदान करने वाले देवता भी हैं। अत: यह व्रत बुध्दि की शुध्दि की दृष्टि से भी महत्व रखता है। इस तिथि पर मध्यान्ह के समय भगवान श्री गणेश का शास्त्रोक्तविधि-विधान से पूजा, आराधना करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार नियम-संयम से व्रत करने पर व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं भगवान गणेश उसे ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण है जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।


व्रत विधि 

भगवान श्री गणेश की प्रसन्नता के लिए प्रतिमाह विनायकी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। जानते हैं इस दिन गणेश कृपा के लिए कैसे करें श्री गणेश की पूजा-अर्चना -

- प्रात:काल स्नान एवं नित्यकर्म से शीघ्र निवृत्त हों। 

- मध्यान्ह के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। 

- संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। इस पूजन में भगवान श्री गणेश को सोलह प्रकार की पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। इनमें धूप, दीप, गंध यह शास्त्रों में वर्जित बताया गया है। 

- गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए २१ दुर्वा-दल चढ़ाएं।

ॐ गणाधिपायनम:। ॐ उमापुत्रायनम:। ॐ विघ्ननाशायनम:। ॐ विनायकायनम:। ॐ ईशपुत्रायनम:। ॐ सर्वसिद्धिप्रदायनम:। 

ॐ एकदन्तायनम:। ॐ गजवक्त्रायनम:। ॐ मूषकवाहनायनम:। ॐ कुमारगुरवेनम:।

- भगवान गणेश का मंत्र ओम गं गणपतये नम: बोलकर भी दुर्वा चढा सकते हैं। इस मंत्र का १०८ बार जप भी करें। 

- गुड़ या बूंदी के २१ लड्डुओं का ही भोग लगाना चाहिए। इनमें से ५ लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और ५ ब्राह्मण को प्रदान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें। 

- पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। यह स्त्रोत जानने के लिए इस साईट के पूजन सेगमेंट में क्लिक करें।

-ब्राह्मण भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा प्रदान करने के पश्चात् संध्या के समय स्वयं भोजन ग्रहण कर सकते हैं। संभव हो तो उपवास करें। व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर श्री गणेश की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।


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