ईश्वर का वास...
एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये, दुकान मे अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे, एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए सन्यासी ने दुकानदार से पूछा, इसमे क्या है ? दुकानदारने कहा - इसमे नमक है ! सन्यासी ने फिर पूछा, इसके पास वाले मे क्या है ? दुकानदार ने कहा, इसमे हल्दी है !
इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा, अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा उस अंतिम डिब्बे मे क्या है?दुकानदार बोला, उसमे राम -राम है !
सन्यासी ने पूछा, यह राम-राम किस वस्तु का नाम है ! दुकानदार ने कहा - महात्मन ! और डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं, पर यह डिब्बा खाली है, हम खाली को खाली नही कहकर राम-राम कहते हैं !
संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! ओह, तो खाली मे राम रहता है !
भरे हुए में राम को स्थान कहाँ ?
लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ?
राम यानी ईश्वर तो खाली याने साफ-सुथरे मन मे ही निवास करता है !
एक छोटी सी दुकान वाले ने सन्यासी को बहुत बड़ी बात समझा दी!